Tuesday

Hopeless

ज़िंदगी आज नाउम्मीद थोड़ी कम होती
गर तेरी आँखें उस दिन कुछ नम होतीं

ये सोच के कि तू भी कभी याद करती होगी
मैं तो जीने को तय्यार था
लेकिन उस दिन तेरी मुस्कुराहट में
न संवेदना थी न प्यार था
कुछ कहते कहते ही रुक गया मैं
वरना ज़िंदगी मेरी भी खुश सनम होती
गर तेरी आँखें उस दिन कुछ नम होतीं

इस लिये खड़ा रहा कि
मुड़ के देखोगी एक बार
लिये दिल में एक अनसुनी आह
आँखों में धूल का गुबार
सूखे होठों पे सहमी सी चाह में
झलकती मौत की ज़िंदगी कुछ कम होती
गर तेरी आँखें उस दिन कुछ नम होतीं

4 comments:

Anonymous said...

short and sweet!

-nitin

None said...

@ankit: Bohot khoobsurat likha aapne...bohot zyaada khoobsurat...

Ankit said...

@नितिन : आपसे ही सीखा है :-)

@आबेराह : इस नवाज़िश के लिये शुक्रिया

Anonymous said...

subhanallah, mere shayar, subhanallah

-nikux

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Like a particularly notorious child's tantrums, a mountaneous river's intemperance, a volcano's reckless carelessness and the dreamy eyes of a caged bird, imagination tries to fly unfettered. Hesitant as she takes those first steps, she sculpts those ambitious yet half baked earthen pots.