Thursday

A cricketing slugfest

आँखों मे जलती धूप और मुह पे लू के थपेड़े,
पसीने से भीगी शर्ट और धूल धूसरित उज्जड़ बाल ।
रहरहकर नंगे पैरों में चुभते वो कंकड़ हजार,
अगली गेंद से नज़र हटने का लेकिन ना कोई सवाल ।

मुनियों की सी एकाग्रता और गेंदबाज पे पैनी नज़र,
गदा समान बल्ला मुठ्ठी में कसकर पकड़ खड़े तय्यार ।
फील्डर और सीमा का, अवचेतन मन में चित्र खिंचा,
तन गई भुकुटी लो शुरू हुआ अब अगली बाल का इंतजार ।

अपना पूरा ज़ोर लगाकर, गेंदबाज ने फेकी गेंद,
सन्नाटे को चीरती बढ़ती, ध्वनि-सीमा को कर गई पार ।
एक कदम कर पीछे लेग पे, बल्लेबाज ने बल्ला भांजा,
दम टूटा फील्डर का पीछे, आगे देखो हो गये चार ।

उल्लासोन्मादित हर्षित दर्शकगण, चहक उठे और उछल पड़े,
तालियों और नारों कि गूंजों से, होता जीत का अभिवादन ।
बल्लेबाज कंधों पे चढ़कर, प्रशंसा का करता रसपान,
हार कठिन है सहनी लेकिन, उससे भी दुष्कर यह क्रंदन !

-Self

1 comment:

kowsik said...

आधॆ सॆ ज्यादा समझ मॆं आया.... पर पूरा नहीं :(

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Like a particularly notorious child's tantrums, a mountaneous river's intemperance, a volcano's reckless carelessness and the dreamy eyes of a caged bird, imagination tries to fly unfettered. Hesitant as she takes those first steps, she sculpts those ambitious yet half baked earthen pots.